
कुठौंद (जालौन )तालाबों को सहेजने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा तथा सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों के बाद इन्हें अतिक्रमित होने से रोकने के लिए प्रदेश शासन द्वारा अमृत सरोवर तालाब बनाने की योजना प्रचलित है। सरकार के नुमाइंदों की बेरुखी के चलते दो एकड़ से अधिक भू भाग में स्थित विकासखंड को कुठौद की ग्राम नकेलपुरा में बना तालाब लापरवाही की दुखियारी कहानी बयां कर रहा है।अमृत सरोवर तालाब बनाए जाने के लिए दो एकड़ से अधिक का रकवा जहां पर हो और वहां तालाब हो तो उसके सुंदरीकरण के लिए वृक्षारोपण से अच्छादित कर उसे सहेजने संभालने के लिए पानी की तरह सरकारी धन बहाया जा रहा है ।विकासखंड के कई ग्रामों में अमृत सरोवर तालाबों की दशा देनी है यहां सरकारी पैसा जो पानी के उद्धार के लिए आया था ।वह पानी की तरह ही बह गया है लेकिन नकेलपुरा में बना तालाब प्रशासन के नकारापन की कहानी वयाकर अपनी बदहाल स्थिति पर आंसू बहा रहा है। दो एकड़ से अधिक भूभाग में बना यह तालाब जलकुंभी तथा जलीय पौधों से पटकर अव अपना अस्तित्व खोता नजर आ रहा है। विकासखंड स्तर पर तालाबों को संरक्षित करने के लिए प्रत्येक वर्ष अभियान चलाए जाते हैं इसे प्रशासन की अनदेखी कहें या प्रशासन कीआओझल नजर जिस कारण यह तालाव अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने के लिए विवस बना हुआ है। ग्राम पंचायत मनरेगा योजना के अंतर्गत मेड बंधी जल रोक बांध के नाम पर अच्छा खासा फील गुड का सुखद अहसास करती है कागजों में ऐसा काम कई बार थोक के भाव में चुका है लेकिन इसकी बदहाल स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है गांव के लोगों में तालाब का सुंदरीकरण ना होने को लेकर गहरा रोष बना हुआ है।तालाब की स्थिति आज के दौर में चिंता जनक बनी हुई है कुछ ग्राम पंचायतों को छोड़ दिया जाए तो प्राचीन कुआं, तालाब अपना अस्तित्व खोते नजर आ रहे हैं ।जिस कारण से तालाबों का आकार दिनों दिन छोटा होता जा रहा है ।फाइलों तथा तहसील के आंकड़ों में तालाब हरा-भरा दिखाई देता है। पूछने पर ग्राम के निवासी व जनपद के वयो वृद्ध वरिष्ठ पत्रकार परम चतुर्वेदी कहते हैं कि पहले इन तालाबों में लोग स्नान करके पूजन दर्शन किया करते थे अब इस तालाब में जलकुंभी तथा जलीय पौधों ने इसे अपने आगोश में ले लिया है जिससे अब तालाब का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है जिला प्रशासन को चाहिए की विशालकाय तालाबों के लिए एक अभियान चलाया जाए और उनके सुंदरीकरण का कार्य कराया जाए कच्ची सड़क हो या खेतों की मेड़बंदी हो यह सब कार्य भी वेमतलब ही साबित होते हैं क्योंकि 5 वर्ष में एक चकमारग क ई वार डाला जाता है यदि 5 वर्ष में एक बार ही तालाबों पर थोड़ा बहुत कम कर दिया जाए तो पूर्वजों की धरोहर सुरक्षित रह सकती है।